चन्द्रमा को नव ग्रहो मे रानी की उपाधिप्राप्त है मुख्यतः चन्द्रमा को माता, वाक पटुता, वाचालता, मन, मनोवृन्ति और अन्तहः करण का प्रतीक मानते है संवेदनाये, मधुरता, दयालुता, प्रसन्नता, कल्पना शक्ति, सौन्दर्य स्त्री सुख, स्मरण शक्ति आदि का विचार भी चन्द्र से किया जाता है यह कर्क राशि का स्वामी, वृष राशि के 03 अंशो पर परम उच्च और 27 अंश मे मूल त्रिकोण होता है वृश्चिक राशि 03 अंशो पर परम नीच माना जाता है।
चन्द्रमा के अरिष्ट होने पर मुख्यतः अनिद्रा, कफ सम्बन्धी रोग, पाचक संस्थान का गड़ बड़ाना, अजीर्ण, ठंडक, बुखार, गठिया, मानसिक असन्तुलन, पेट सम्बन्धी रोग, टी0वी0,दमा, जल से सम्बन्धी समस्त बीमारियाॅं, वीर्य पतन, लिकोरिया आदि से शारीरिक एवं मानसिक कष्ट होता है।
अरिष्ट निवारण हेतु क्या करे:-
मोती, चांदी , चावल, दही, मिश्री, सफेद कपड़ा, सफेद फूल, शंख , कपूर, वांस की ढलिया, सफेद गाय, तथा सफेद चन्दन आदि का दान करना चाहिए। ऊॅं सोम सोमाय नमः ऊॅं ऐं क्लीं सोमाय नमः मन्त्र का जप लाभकारी रहता है। मोती, मून स्टोन, खिरनी की जड़, प्रतिष्ठित करके धारण करना चाहिये। दान का समय तथा रत्न धारण कासमय प्रदोष (संध्याकाल) मे शुभप्रद माना गया है। अषुभ चन्द्र की शांति के लिये पूर्णमासी तथा सोमवार का वृत और शिव पार्वती की उपासना विषेष लाभदायक रहती है।