मधुमेह (डायबिटीज)
वैध पारस नाथ शुक्ल 'शास्त्री'
विभागाध्यक्ष
विवेकानन्द पालीकिलनिक लखनऊ
मो0 नं0- 9336148404
परिचय - आयुर्वेद में अटठारह प्रकार के प्रमेह (लाला मेह, उदक मेह, वसा मेह, काल मेह, हसितमेह, इक्षुमेह, भूनमेह, लाला मेह, स्वप्न मेह, शुक्रमेंह आदि) बताए गए हैं इस सबकी चिकित्सा न करने पर अन्त में इनकी परिणिति मधुमेह मे होती है ऐसा व्याख्यान मिलता है कि यह सर्वप्रथम मोदक प्रिय गणेश जी को हुआ था जिसके कारण उनकी नासिका गल गर्इ थी।
कारण - अत्यधिक मीठा, तला एवं गरषिठ आहार भोजन करना तथा शारीरिक श्रम न करने वालों को यह रोग होता है, संक्षेप मे यह अति धनी एवं विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करने वालों को होने वाली व्याधि है, अधिक शारीरिक श्रम करने वाले तथा मोटे अनाजों का बिना तला भुना भोजन करने वालों को यह नही होता एवं इस व्याधि से ग्रस्त लोग यदि आलस्य त्याग कर श्रमशील जीवन व्यतीत करने लगते हैं तो यह ठीक भी हो जाता है।
लक्षण -
1-एकाएक वनज कम होना।
2-पेशाब बार-बार होना।
3-मुह सूखना, चक्कर आना।
4-भूख अधिक लगना।
5-शरीर में फोड़े फुंसियों का होना।
6-शरीर में हुए घाव का शीघ्र न भरना।
7-सदैव सोते रहने की इच्छा होना।
8-प्रजनन क्षमता मे ह्रास होना आदि।
चिकित्सा - आयुर्वेद मतानुसार जितने भी कवाय एवं कटु रस प्रधान द्रव्य हैं सब इसकी चिकित्सा में प्रयुक्त हो सकते हैं इन्हें बराबर सेवन करने से मधुमेह मे लाभ मिलता है जैसे जामुन, आम की छाल, बबूल, बेलपत्र, गूलर, आंवला, हरड़, करैला, नीम, ग्बार फली, सागौन के फल, मेथी, विजयसार, गुड़मार, लाल चन्दन आदि खनिज द्रव्यों में शीलाजीत, स्वर्ण माक्षिक भस्म, अभ्रक भस्म, आदि का प्रयोग किया जाता है।
कुछ प्रमुख योग - स्वर्ण वंग, चन्द्रप्रभावटी, बसन्तकुसुमाकर, शिलाजत्वादि लौह, करैला चूर्ण, पंचनिम्ब तथा न्यग्रोधादि कषाय का प्रयोग होता है।
आहार - कषाय एवं कटु रस वाले पदार्थ जैसे करैला, ग्वार फली आदि।
मोटे एवं रेशा युक्त पदार्थ जैसे, कोदौ, सावां, जौ, छिलका सहित चना, मोठ, सोयाबीन आदि।
ऐसे खाध जिनका नाम 'क' से प्रारम्भ हो जैसे कददू, ककड़ी, करैला, कुंदरु, कमल ककड़ी, कुलथी आदि।
विहार -
अमीरों का जीवन स्तर त्याग कर गरीबों का जीवन स्तर अपना लेने मात्र से मधुमेह दूर हो जाता है। जैसे-
मुलायम बिस्तर को त्याग, तख्त पर सोए।
रबड़ी, मलार्इ, दही, मैदा, खोया, डालडा, शर्करा को त्याग दें।
कम से कम चार किलोमीटर प्रात: एवं 2 किलोमीटर सायंकाल पैदल चलें।
मटठा सेवन करें।
शारीरिक श्रम से विरत न हों।
अति सम्भोग से बचें।
प्राणायाम, ध्यान नियम पूर्वक करें।
अपव्य - अव्यधि का सोना, एवं जमीन के नीचे होने वाले पदार्थ जैसे आलू, शकरकंद, गाजर आदि तथा गन्ना या गन्ने से बने पदार्थ (यदि बहुत आवश्यक हो गुड़ सेवन करें अतिगरिष्ट आहार त्याग दें, मीठे फलों का अति सेवन न करें।)
नोट- कुछ आयुर्वेदाचार्य मधुमेह मे शहद पथ्य बताते हैं परन्तु मेरे विचार से आजकल जो मधु उपलब्ध है वह अपथ्य है, जांगल मधु किंचित मात्र ले सकते हैं, गाय एवं बकरी का दूध एवं छाछ पथ्य हैं। फलों में अनार पथ्य हैं, इति।
'जय आयुर्वेद'