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बृहस्पति ग्रह रोग निवारणार्थ मन्त्र, रत्न

देव गुरु बृहस्पति जी को नीति और धर्म तथा विद्या का महान गुरु माना जाता है यह सत्वगुण प्रधान, दीर्घ और स्थूल शरीर वाले, कफ प्रकृति, पीला वर्ण, गोल आकृति, आकाष तत्व प्रधान, बड़े पेट वाले, पूर्वाेत्तर दिशा के स्वामी, बातचीत मे गम्भीरता लिये, स्थिर प्रकृति वाले है यह मीठे रस और हेमन्त ऋतु के अधिष्ठाता है। धनु तथा मीन राशियों के स्वामी भी है यह कर्क राषि के पांच-05 अंशों पर परम उच्च तथा मकर राषि के 05अंश परम नीचे होते हैं। यह एक राशि मे लगभग 01 वर्ष 01 माह मे पुरा चक्कर लगा लेते हैं।
गोचर मे यह 2, 5, 7, 9, 10, 11 भाव मे अति उत्तम फल करते हैं यही वजह है कि विवाह संस्कार आदि मे गोचर बृहस्पति को अति महत्व दिया जाता है।
क्या करता अशुभ बृहस्पतिः-- बृहस्पति के अशुभ होने की स्थिति मे, उदर रोग, यकृत रोग, मस्तिष्क रोग, फेफड़ो के रोग, आंतो के रोग, लम्बी अवधि का बुखार, रीड़ की हड्डी के रोग, कर्ण रोग, वायुयान दुर्घटना जैसी स्थितियां बनती हैं। शिक्षा मे अवरोध, विवाह मे विध्न बाधायें, धर्म-कर्म, पूजा पाठ मे मन ना लगना, वृद्धों का सम्मान नही करना जैसी परिस्थियां आने पर बृहस्पति को अशुभ मानना चाहिये।

कैसे करें बृहस्पति को शुभः--
1. बृहस्पतिवार का व्रत करना चाहिये।
2. पुखराज, कांसा, सोना, चने की दाल, खांड, घी, पीला फूल, पीला कपड़ा, हल्दी, पुस्तक, घोड़ा, भूमि तथा पीले फल का दान करना चाहिये।
3. ऊँ ऐं क्लीं बृहस्पतये नमः का जप कम से कम 19000 बार अवष्य करना चाहिये।
4. बृहस्पतिवार की संध्या काल मे 05 से 06 रत्ती का पुखराज अथवा उपरत्न सुनहला, प्रतिष्ठित कराकर धारण करने से अशुभ बृहस्पति का प्रभाव कम होता है।
5. . बृहस्पति जी वृद्धिदायक ग्रह है विद्या, सन्तान, धर्म आदि की वृद्धि के लिये बृहस्पति जी शुभ रहना अति अनिवार्य है।
6. ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः मन्त्र का जप भी 19000 की संख्या मे कर सकते हैं।

 


पं0 आनन्द अवस्थी:
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