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शनि ग्रह पीड़ा (रोग) निवारणार्थ - मन्त्र - रत्न

शनि को काल पुरुष मे पीड़ा और दुख का प्रतीक माना जाता है आकाष मन्डल मे शनि जी सबसे सुन्दर ग्रह है यह खुश होने पर राजा तथा नाखुश होने पर व्यक्ति को रंक बनाने की अद्भुत क्षमता रखते हैं यह बृद्धा-अवस्था के प्रतीक, वात-कफ प्रकृति वाले, तमोगुणी, आलसी प्रवृति वाले, तिक्त कसेले रस के स्वामी, वायुतत्व, नपुन्सक एवं मूल संज्ञक, शनिवार तथा शिशिर ऋतु और पष्चिम दिशा के स्वामी हैं।

शनि जी से मुख्यतः-- आयु, रोग, मृत्यु, वियन्ति, दुख, धैर्य, परिश्रम, सेवा, व्यापार, कष्ेा, तिल, तैल, लौह का विचार किया जाता है।
उच्च शनि से लाभः-कुण्डली मे यदि शनि बेहतर स्थिति मे है तो यह नौकरी उद्योग आदि मे आकर्षक धन लाभ देता है कृषि, भूमि आदि के क्षेत्र मे आकष्मिक लाभ की स्थिति पैदा करता है उच्च पद प्राप्ति का योग तथा सामाजिक जीवन मे विशेष लाभ की परिस्थितियों निर्मित करता है।
शनि से हानिः -- आपके जन्मांक मे यदि शनि अशुभ स्थिति मे है तो यह अपमान, अपभय, अपयश , आर्थिक आय मे कमी, धन हानि, दुख पीड़ा, ग्रह कलह, रोग एवं शत्रुभय होता है। वायुरोग, कफजन्य रोग, घुटनो मे दर्द, वातशूल,शवांस रोग, श्शूल रोग, पांव, पेट सम्बन्धी, कैन्सर, आदि से कष्ट देते है वाहन दुर्घटना की परिस्थितियां पैदा करते हैं।
कैसे करें शनि को शुभः---
1. ऊँ शं शैनैश्चराय नमः तथा ऊँ ऐं हीं शनैश्चराय नमः मंत्र का कम से कम 23000 बार जप करके षनि के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
2. शनि की प्रिय वस्तुओं जैसे - काले उरद, काला कपड़ा, चाकू कड़ाही, तिल, कडुवा तेल, काली चरपल, काले पुष्प, काली गाय, नीलम, सोना आदि का दान शनिवार को मध्यान्ह काल मे करना चाहिये।
3. शनिवार को सांयकाल पीपल के वृक्ष पर काले तिल और तेल का दीपक जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
4. कुष्ठ आश्रम, अन्ध विद्यालय आदि मे षनि ग्रह जुड़ी वस्तुओं का दान करना शनि कारक माना गया है।
5.शनिवार तथा मंगलवार का व्रत भी विधि पूर्वक रहने से शनि जी प्रसन्न होते हैं। 6.प्रतिष्ठित कराकर नीलम धारण करना भी शनि के दुष्प्रभाव को कम करता है।

 


पं0 आनन्द अवस्थी:
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